हस्ती अपनी हबाब की सी है,ये नुमाइश सराब की सी है,
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए,पंखुड़ी इक गुलाब की सी है,
चश्म-ए-दिल खोल इस भी आलम पर,याँ की औक़ात ख़्वाब की सी है,
बार बार उस के दर पे जाता हूँ,हालत अब इज़्तिराब की सी है,
नुक़्ता-ए-ख़ाल से तिरा अबरू,बैत इक इंतिख़ाब की सी है,
मैं जो बोला कहा कि ये आवाज़,उसी ख़ाना-ख़राब की सी है,
आतिश-ए-ग़म में दिल भुना शायद,देर से बू कबाब की सी है,
देखिए अब्र की तरह अब के,मेरी चश्म-ए-पुर-आब की सी है,
‘मीर’ उन नीम-बाज़ आँखों में,सारी मस्ती शराब की सी है,
हस्ती अपनी हबाब की सी है,ये नुमाइश सराब ..
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August 12, 2018
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