अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ,
देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ,
बे-साख़्ता निगाहें जो आपस में मिल गईं,
क्या मुँह पर उस ने रख लिए आँखें चुरा के हाथ,
ये भी नया सितम है हिना तो लगाएँ ग़ैर,
और उस की दाद चाहें वो मुझ को दिखा के हाथ,
बे-इख़्तियार हो के जो मैं पाँव पर गिरा,
ठोड़ी के नीचे उस ने धरा मुस्कुरा के हाथ,
गर दिल को बस में पाएँ तो नासेह तिरी सुनें,
अपनी तो मर्ग-ओ-ज़ीस्त है उस बेवफ़ा के हाथ,
वो ज़ानुओं में सीना छुपाना सिमट के हाए,
और फिर सँभालना वो दुपट्टा छुड़ा के हाथ,
क़ासिद तिरे बयाँ से दिल ऐसा ठहर गया,
गोया किसी ने रख दिया सीने पे आ के हाथ,
ऐ दिल कुछ और बात की रग़बत न दे मुझे,
सुननी पड़ेंगी सैकड़ों उस को लगा के हाथ,
वो कुछ किसी का कह के सताना सदा मुझे,
वो खींच लेना पर्दे से अपना दिखा के हाथ,
देखा जो कुछ रुका मुझे तो किस तपाक से,
गर्दन में मेरी डाल दिए आप आ के हाथ,
फिर क्यूँ न चाक हो जो हैं ज़ोर-आज़माइयाँ,
बाँधूंगा फिर दुपट्टा से उस बे-ख़ता के हाथ,
कूचे से तेरे उट्ठें तो फिर जाएँ हम कहाँ,
बैठे हैं याँ तो दोनों जहाँ से उठा के हाथ,
पहचाना फिर तो क्या ही नदामत हुई उन्हें,
पंडित समझ के मुझ को और अपना दिखा के हाथ,
देना वो उस का साग़र-ए-मय याद है ‘निज़ाम’,
मुँह फेर कर उधर को इधर को बढ़ा के हाथ,
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
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August 12, 2018
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