Jate Huye December Ko Ek Akhri ...


दोस्त था या दुश्मन ये जाता हुआ दिसंबर…
ना हम ये जान पाए क्या चाहता था ये दिसंबर…

जिस्म को सर्द रखा दिल में मीठा सा दर्द रखा…
कुछ यादो के बदले कुछ यादे दे गया दिसंबर…

दोस्त था या दुश्मन ये जाता हुआ दिसंबर…

मीठी सी यादे किसी की किसी को दर्द गहरे ज़ख़्म का…
किसी के लिए ये मरहम किसी के लिए ज़हर सा…

किसी को मिला बिछड़ा हमदम अपना किसी को अपनों से दूर करता ये दिसंबर…
किसी के दामन में सिर्फ गम और किसी की झोलिया खुशिओ से भरता ये दिसंबर…

किसी ने घर अपना खोया किसी को महलो में जगह मिल गयी…
कोई मर गया तन्हाई के दर से किसी को ज़िंदगी में जीने की वजह मिल गयी…

बुरी हो या अच्छी अपनी हरकतों पे इतराता हुआ दिसंबर…
दोस्त था या दुश्मन ये जाता हुआ दिसंबर…

हम तीनो वही खड़े है जहां से साल शुरू किया था…
एक मै एक मेरी तन्हाई और एक आहें भरता हुआ दिसंबर…

किसी को डरता तो किसी से डरता हुआ दिसंबर…
आखरी सलाम कर दो वो देखो ठण्ड से मरता हुआ दिसंबर…

अपने हर किये पर पछताता हुआ दिसंबर…
दोस्त था या दुश्मन ये जाता हुआ दिसंबर…
Jate Huye December Ko Ek Akhri ... Jate Huye December Ko Ek Akhri ... Reviewed by Admin on August 13, 2018 Rating: 5

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