मचलते हुए मेरे पगले से दिल के अरमान है यह
मेरे अन्दर के परिन्दे की उड़ने की वोह तमन्ना
सुलझे हुए यह मेरे गेंसू कुछ कुछ बिखर से रहे हैं
खुलने को हैं बेताब तेरी खेलती उँगलियों के पोटों से
तुझमें लिपट कर अभी तो गेंसुओ का बिखरना है बाकी
एक लट करके बगावत छा गई रुख्सारो पर घटा बनकर
नजरें थी मेरी जो पथराईं कबसे तुझे पाने की चाहत में
सागर की लहरों सी उठी हैं मचल आज तेरी नज़र पाकर
निर्विचार निशब्द रूह मेरी के थे होंठ सिले हुए कबसे
अधखुले से हैं आज तेरे होंठों से मिलन की चाह बनकर
निर्जीवन नीरस से दिखते थे जो रुख्सार मेरे अब तक
आज दहक उठे हैं आंगारो से तेरे चुंबन की आस पाकर
मेरे जिस माथे पर सजा था तेरा इश्क मेरा गरूर बनकर
तूँ सज गया है वहीं आज मेरी बिंदिया का सिंधूर बनकर
सजना आ चूम मेरे कानों के झुमके को होंठों के बीच लेकर
वोह मुझसे भी ज़्यादा लहरा उठे हैं आज तुझे इतना क़रीब पाकर
ले आँचल मेरा ले उड़ी मचलती हवाएँ आज सावन की
देख आँखों में तेरी मुझमें सिमटने की मचलती चाह पाकर
मचलते हुए मेरे पगले से दिल के अरमान है यह
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August 09, 2018
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