है इश्क़ किस शय का नाम, मेरी ज़िंदगी की इबादत दिखलाती है
कहानी मेरी है बनी किताब-ए-मुहब्बत, खुदाई यह दिखलाती है
ऐसा पाक संवर निकलेगा मंज़िर, मेरी इस शदीद मुहब्बत का
जब चला था इश्क़ निभाने, सालों पहले, कभी सोचा ना था
खुद की मंज़िले भूल, तेरी राहों को अपनाया था कभी मैंने
मिटा खुद का वजूद , तुझमें यूं समा जाऊँगा, सोचा ना था
जानता था कुछ करिश्मे करना लिखा है, मेरी अधूरी लकीरों में
खुदा तेरा हो जाऊंगा, तेरा आसमां तेरी छत बनकर, सोचा न था
खुद का वजूद तलाशने, निकला था घर से एक बच्चा सालों पहले
तेरी तमन्नाओं की लकीर बनेगी, लक्ष्मण रेखा सोच मेरी, सोचा न था
मिट्टी के खिलौनों की तलाश में, भटकता रहता यह मिट्टी का खिलौना
तेरी रूह की एक मुस्कराहट कमा, खुदा को पा जाऊँगा, सोचा ना था
सुना था पाक सच्ची मुहब्बत, रूहानी फितरत होती है फकीरों की
दीवानगी में तेरी , खुद को इस कदर सँवार जाऊँगा, सोचा ना था
सुनकर आज बाज़ारू मुहब्बत के अफ़साने, कांप उठती है रूह मेरी
है इश्क़ किस शय का नाम, मेरी ज़िंदगी की इबादत दिखलाती
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August 09, 2018
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